परिवर्तन
परिवर्तन
एक राजा को राज भोगते हुए काफी समय हो गया था ! बाल भी सफ़ेद होने लगे थे ! एक दिन उसने अपने दरबार में एक उत्सव रखा और अपने गुरुदेव एवं मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया ! उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया !
राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दीं, ताकि यदि वे चाहें तो नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे उसे पुरस्कृत कर सकें ! सारी रात नृत्य चलता रहा ! ब्रह्म मुहूर्त की बेला आयी ! नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है, उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा :➤
'बहु बीती, थोड़ी रही, पल पल गयी बिताय !
एक पलक के कारने, क्यों कलंक लग जाय !!
➤ अब इस दोहे का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपने अनुरुप अलग-अलग अर्थ निकाला ! तबले वाला सतर्क होकर बजाने लगा !
➤ जब यह बात गुरु जी ने सुनी तो उन्होंने सारी मोहरें उस नर्तकी के सामने फैंक दीं !
➤ वही दोहा नर्तकी ने फिर पढ़ा तो राजा की लड़की ने अपना नवलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया !
➤ उसने फिर वही दोहा दोहराया तो राजा के पुत्र युवराज ने अपना मुकट उतारकर नर्तकी को समर्पित कर दिया !
➤ नर्तकी फिर वही दोहा दोहराने लगी तो राजा ने कहा :- 'बस कर, एक दोहे से तुमने वैश्या होकर भी सबको लूट लिया है' !
➤ जब यह बात राजा के गुरु ने सुनी तो गुरु के नेत्रों में आँसू आ गए और गुरु जी कहने लगे - 'राजा ! इसको तू वैश्या मत कह, ये तो अब मेरी गुरु बन गयी है ! इसने मेरी आँखें खोल दी हैं ! यह कह रही है कि मैं सारी उम्र संयम पूर्वक भक्ति करता रहा और आखिरी समय में नर्तकी का मुज़रा देखकर अपनी साधना नष्ट करने यहाँ चला आया हूँ, भाई ! मैं तो चला ! यह कहकर गुरु जी तो अपना कमण्डल उठाकर जंगल की ओर चल पड़े !
➤ राजा की लड़की ने कहा - 'पिता जी ! मैं जवान हो गयी हूँ ! आप आँखें बन्द किए बैठे हैं, मेरी शादी नहीं कर रहे थे और आज रात मैंने आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद कर लेना था ! लेकिन इस नर्तकी ने मुझे सुमति दी है कि जल्दबाजी मत कर कभी तो तेरी शादी होगी ही ! क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर तुली है' ?
➤ युवराज ने कहा - 'पिता जी ! आप वृद्ध हो चले हैं, फिर भी मुझे राज नहीं दे रहे थे ! मैंने आज रात ही आपके सिपाहियों से मिलकर आपका कत्ल करवा देना था ! लेकिन इस नर्तकी ने समझाया कि पगले ! आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है, क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेता है ! धैर्य रख' !
➤ जब ये सब बातें राजा ने सुनी तो राजा को भी आत्म ज्ञान हो गया ! राजा के मन में वैराग्य आ गया ! राजा ने तुरन्त फैसला लिया - 'क्यों न मैं अभी युवराज का राजतिलक कर दूँ' ! फिर क्या था, उसी समय राजा ने युवराज का राजतिलक किया और अपनी पुत्री को कहा - 'पुत्री ! दरबार में एक से एक राजकुमार आये हुए हैं ! तुम अपनी इच्छा से किसी भी राजकुमार के गले में वरमाला डालकर पति रुप में चुन सकती हो ! राजकुमारी ने ऐसा ही किया और राजा सब त्याग कर जंगल में गुरु की शरण में चला गया !
➤ यह सब देखकर नर्तकी ने सोचा - 'मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, लेकिन मैं क्यूँ नहीं सुधर पायी' ? उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य आ गया ! उसने उसी समय निर्णय लिया कि आज से मैं अपना बुरा धंधा बन्द करती हूँ और कहा कि 'हे प्रभु ! मेरे पापों से मुझे क्षमा करना ! बस, आज से मैं सिर्फ तेरा नाम सुमिरन करुँगी' !
➤ समझ आने की बात है, दुनिया बदलते देर नहीं लगती ! एक दोहे की दो लाईनों से भी हृदय परिवर्तन हो सकता है ! बस, केवल थोड़ा धैर्य रखकर चिन्तन करने की आवश्यकता है !
➤ प्रशंसा से पिघलना नहीं चाहिए, आलोचना से उबलना नहीं चाहिए ! नि:स्वार्थ भाव से कर्म करते रहें ! क्योंकि इस धरा का, इस धरा पर, सब धरा रह जायेगा !!!
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