Shani Dev

March 24, 2018 KUNJ BIHARI JI (PICTURE) 0 Comments

Shani Dev
Jai Shani Dev

शनि भगवान के बारे में जानें :

शनि देव को हिन्दू धर्म में न्याय का देवता माना जाता है। कई लोग इन्हें कठोर मानते हैं क्योंकि इनके प्रकोप से बड़े से बड़ा धनवान भी दरिद्र बन जाता है। परंतु ऐसा सही नहीं है। दरअसल शनि देव न्याय के अधिकारी है और उनका न्याय निष्पक्ष होता है। निष्पक्ष न्याय में दंड भी मिलता है।

शनि देव का जन्म :

शनि देव के जीवन से जुड़ी कई प्रमुख बातें हैं जिनमें उनका बचपन सबसे प्रमुख है। हिन्दू मान्यतानुसार शनि देव का जन्म सूर्यदेव की दूसरी पत्नी छाया के गर्भ से हुआ था। जिस समय शनि देव गर्भ में थे माता छाया शिवजी की पूजा में लीन थीं। उन्हें अपने खाने-पीने की भी सुध नहीं होती थी। इस कारण शनि देव का वर्ण श्याम यानि काला हो गया।

शनि देव का रंग देख सूर्यदेव क्रोधित हो उठे और अपनी पत्नी छाया पर आरोप लगाया कि शनि देव उनके पुत्र नहीं हैं। तभी से शनि देव का अपने पिता से बैर हो गया। इसके बाद सूर्य की तरह शक्तियां और स्थान पाने के लिए शनि देव ने शिवजी की आराधना की और नवग्रहों में स्थान पाया।

शनि देव के मंत्र :

माना जाता है कि "ॐ शं शनैश्चराय नमः" मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को शनि की महादशा और साड़ेसाती प्रकोप से राहत मिलती है।

शनि देव के नाम :

1.कोणस्थ
2.पिंगल
3.बभ्रु
4.रौद्रान्तक
5.यम
6.सौरि
7.शनैश्चर
8.मंद
9.पिप्पलाश्रय

शनि देव का परिवार :

हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार शनि देव सूर्य के पुत्र हैं तथा इनकी माता का नाम छाया है। माना जाता है कि जन्म से ही काला रंग होने के कारण इनके पिता ने इन्हें नहीं अपनाया था। इसलिए शनि देव अपने पिता को अपना शत्रु मानते हैं।

शनि देव से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें :

1. शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है।
2. शनि देव का वाहन गिद्ध, कुत्ता, भैंस आदि हैं।
3. शनिवार को तेल, काले तिल, काले कपड़े आदि दान करने से शनि देव प्रसन्न रहते हैं।
4. मान्यता है कि शनि देव की अपने पिता सूर्यदेव से अच्छे रिश्ते नहीं हैं।
5. एक कथानुसार हनुमान जी ने शनि देव को रावण की कैद से मुक्त कराया था। तभी से हनुमान जी की आराधना करने वाले जातकों को शनि देव नहीं सताते।
6. शनि देव की गति मंद यानि बेहद धीमी है। इसी कारण एक राशि में वह करीब साढ़ेसात साल तक रहते हैं। 

शनिदेव को प्रसन्न करने उपाय :

शनिवार का दिन शनि देव को समर्पित होता है। इस दिन तेल चढ़ाने, पीपल पर जल देने, कुत्ते को भोजन कराने आदि से शनि देव प्रसन्न होते हैं। इसके अलावा इस दिन काले रंग की वस्तु दान करने से भी शनि देव प्रसन्न होते हैं।

शनि देव के मुख्य मंदिर :

1.शनि शिंगणापुर
2.शनिश्चरा मंदिर(ग्वालियर)
3.शनि मंदिर (इंदौर)
4.प्राचीन शनि मंदिर (मुरैना)

शनि जयंती :

शनि जयंती का पावन पर्व हिन्दू धर्म का विशेष पर्व माना जाता है। इस दिन को शनि देव के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। शनि जयंती का पर्व उन लोगों के लिए बहुत महत्त्व रखता है जो लोग शनि के प्रकोप से पीड़ित होते हैं। मान्यता है कि इस दिन पूरे श्रद्धाभाव से शनि देव की पूजा करके दान करने से शनि देव प्रसन्न हो जाते हैं।

शनि जयंती का पावन पर्व ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। यह हिन्दू धर्म का विशेष पर्व है। शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है। शनि जयंती के दिन ही सूर्य पुत्र शनि देव का जन्म हुआ था।

शनि जयंती का पर्व पूर देश भर में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग शनि देव को विशेष पूजन द्वारा खुश करने का प्रयास करते हैं।

'स्कन्द पुराण' की एक कथा के अनुसार सूर्य देव का विवाह राजा दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ था। सूर्य देव को संज्ञा से तीन पुत्रों की प्राप्ति हुई थी। सूर्य देव ने उनका नाम यम, यमुना और मनु रखा। संज्ञा शनि देव के तेज को अधिक समय तक नहीं सहन कर पायी। इसलिए उसने अपनी छाया को सूर्य देव के पास छोड़ दिया और वहां से चली गईं। कुछ समय बाद सूर्य देव से छाया को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिन्हें शनि देव के नाम से जाना गया।

शनि जयंती पूजा विधि :

शनि जयंती के दिन पूरे विधि- विधान से शनि देव का पूजन किया जाता है। शनि देव की पूजा करते समय विशेष ध्यान देना अनिवार्य होता है। माना जाता है कि यदि शनि देव क्रोधित हो जाते हैं तो घर की सुख-शांति भंग हो जाती है।

शनि जयंती के दिन पूजा-पाठ करके काला कपड़ा या दाल तथा लोहे की वस्तु दान करने से शनि देव सभी कष्टों को दूर कर देते हैं। शनि देव को प्रसन्न करने के लिए तिल, उड़द, मूंगफली का तेल, काली मिर्च, आचार, लौंग, काले नमक आदि का प्रयोग करना चाहिए। 

शनि चालीसा

॥दोहा॥

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥

जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥1॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्ो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥2॥

पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥3॥

रावण की गतिमति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवाय तोरी॥4॥

भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजीमीन कूद गई पानी॥5॥

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥6॥

रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देवलखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥7॥

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥8॥

तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥9॥

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥10॥

॥दोहा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥


भगवान शनि देव को दंडाधिकारी माना जाता है। मनुष्य को उसके अच्छे और बुरे कर्मों का फल देने वाले शनि देव भगवान सूर्य के पुत्र माने जाते हैं। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए लोग शनि मंदिरों में तेल चढ़ाते हैं। साथ ही शनिदेव की चालीसा, मंत्रों और आरती का पाठ करते हैं।

श्री शनि देवजी की आरती

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥ जय..॥
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥ जय..॥
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥ जय..॥
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥ जय..॥
देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥जय..॥


शनि देव को हिन्दू धर्म में न्याय का देवता माना जाता है। माना जाता है कि इनके प्रकोप से बड़े से बड़ा धनवान भी दरिद्र बन जाता है। शनिवार का दिन शनि देव को समर्पित होता है। इस दिन हनुमान जी को तेल चढ़ाने से शनि के साढ़ेसाती से मुक्ति मिलती है और शनि देव प्रसन्न होते हैं। शनि देव को कई नामों से जाना जाता है आइए जाने शनि देव के विभिन्न नाम :-

शनि देव के 108 नाम :

1. शनैश्चर - धीरे-धीरे चलने वाला
2. शान्त - शांत रहने वाला
3. सर्वाभीष्टप्रदायिन् - सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला
4. शरण्य - रक्षा करने वाला
5. वरेण्य - सबसे उत्कृष्ट
6. सर्वेश - सारे जगत के देवता
7. सौम्य - नरम स्वभाव वाले
8. सुरवन्द्य - सबसे पूजनीय
9. सुरलोकविहारिण् - सुरह्स की दुनिया में भटकने वाले
10. सुखासनोपविष्ट - घात लगा के बैठने वाले
11. सुन्दर - बहुत ही सुंदर
12. घन – बहुत मजबूत
13. घनरूप - कठोर रूप वाले
14. घनाभरणधारिण् - लोहे के आभूषण पहनने वाले
15. घनसारविलेप - कपूर के साथ अभिषेक करने वाले
16. खद्योत – आकाश की रोशनी
17. मन्द – धीमी गति वाले
18. मन्दचेष्ट – धीरे से घूमने वाले
19. महनीयगुणात्मन् - शानदार गुणों वाला
20. मर्त्यपावनपद – जिनके चरण पूजनीय हो
21. महेश – देवो के देव
22. छायापुत्र – छाया का बेटा
23. शर्व – पीड़ा देना वेला
24. शततूणीरधारिण् - सौ तीरों को धारण करने वाले
25. चरस्थिरस्वभाव - बराबर या व्यवस्थित रूप से चलने वाले
26. अचञ्चल – कभी ना हिलने वाले
27. नीलवर्ण – नीले रंग वाले
28. नित्य - अनन्त एक काल तक रहने वाले
29. नीलाञ्जननिभ – नीला रोगन में दिखने वाले
30. नीलाम्बरविभूशण – नीले परिधान में सजने वाले
31. निश्चल – अटल रहने वाले
32. वेद्य – सब कुछ जानने वाले
33. विधिरूप - पवित्र उपदेशों देने वाले
34. विरोधाधारभूमी - जमीन की बाधाओं का समर्थन करने वाला
35. भेदास्पदस्वभाव - प्रकृति का पृथक्करण करने वाला
36. वज्रदेह – वज्र के शरीर वाला
37. वैराग्यद – वैराग्य के दाता
38. वीर – अधिक शक्तिशाली
39. वीतरोगभय – डर और रोगों से मुक्त रहने वाले
40. विपत्परम्परेश - दुर्भाग्य के देवता
41. विश्ववन्द्य – सबके द्वारा पूजे जाने वाले
42. गृध्नवाह – गिद्ध की सवारी करने वाले
43. गूढ – छुपा हुआ
44. कूर्माङ्ग – कछुए जैसे शरीर वाले
45. कुरूपिण् - असाधारण रूप वाले
46. कुत्सित - तुच्छ रूप वाले
47. गुणाढ्य – भरपूर गुणों वाला
48. गोचर - हर क्षेत्र पर नजर रखने वाले
49. अविद्यामूलनाश – अनदेखा करने वालो का नाश करने वाला
50. विद्याविद्यास्वरूपिण् - ज्ञान करने वाला और अनदेखा करने वाला
51. आयुष्यकारण – लम्बा जीवन देने वाला
52. आपदुद्धर्त्र - दुर्भाग्य को दूर करने वाले
53. विष्णुभक्त – विष्णु के भक्त
54. वशिन् - स्व-नियंत्रित करने वाले
55. विविधागमवेदिन् - कई शास्त्रों का ज्ञान रखने वाले
56. विधिस्तुत्य – पवित्र मन से पूजा जाने वाला
57. वन्द्य – पूजनीय
58. विरूपाक्ष – कई नेत्रों वाला
59. वरिष्ठ - उत्कृष्ट
60. गरिष्ठ - आदरणीय देव
61. वज्राङ्कुशधर – वज्र-अंकुश रखने वाले
62. वरदाभयहस्त – भय को दूर भगाने वाले
63. वामन – (बौना) छोटे कद वाला
64. ज्येष्ठापत्नीसमेत - जिसकी पत्नी ज्येष्ठ हो
65. श्रेष्ठ – सबसे उच्च
66. मितभाषिण् - कम बोलने वाले
67. कष्टौघनाशकर्त्र – कष्टों को दूर करने वाले
68. पुष्टिद - सौभाग्य के दाता
69. स्तुत्य – स्तुति करने योग्य
70. स्तोत्रगम्य - स्तुति के भजन के माध्यम से लाभ देने वाले
71. भक्तिवश्य - भक्ति द्वारा वश में आने वाला
72. भानु - तेजस्वी
73. भानुपुत्र – भानु के पुत्र
74. भव्य – आकर्षक
75. पावन – पवित्र
76. धनुर्मण्डलसंस्था - धनुमंडल में रहने वाले
77. धनदा - धन के दाता
78. धनुष्मत् - विशेष आकार वाले
79. तनुप्रकाशदेह – तन को प्रकाश देने वाले
80. तामस – ताम गुण वाले
81. अशेषजनवन्द्य – सभी सजीव द्वारा पूजनीय
82. विशेषफलदायिन् - विशेष फल देने वाले
83. वशीकृतजनेश – सभी मनुष्यों के देवता
84. पशूनां पति - जानवरों के देवता
85. खेचर – आसमान में घूमने वाले
86. घननीलाम्बर – गाढ़ा नीला वस्त्र पहनने वाले
87. काठिन्यमानस – निष्ठुर स्वभाव वाले
88. आर्यगणस्तुत्य – आर्य द्वारा पूजे जाने वाले
89. नीलच्छत्र – नीली छतरी वाले
90. नित्य – लगातार
91. निर्गुण – बिना गुण वाले
92. गुणात्मन् - गुणों से युक्त
93. निन्द्य – निंदा करने वाले
94. वन्दनीय – वन्दना करने योग्य
95. धीर - दृढ़निश्चयी
96. दिव्यदेह – दिव्य शरीर वाले
97. दीनार्तिहरण – संकट दूर करने वाले
98. दैन्यनाशकराय – दुख का नाश करने वाला
99. आर्यजनगण्य – आर्य के लोग
100. क्रूर – कठोर स्वभाव वाले
101. क्रूरचेष्ट – कठोरता से दंड देने वाले
102. कामक्रोधकर – काम और क्रोध का दाता
103. कलत्रपुत्रशत्रुत्वकारण - पत्नी और बेटे की दुश्मनी
104. परिपोषितभक्त – भक्तों द्वारा पोषित
105. परभीतिहर – डर को दूर करने वाले
106. भक्तसंघमनोऽभीष्टफलद – भक्तों के मन की इच्छा पूरी करने वाले
107. निरामय – रोग से दूर रहने वाला
108. शनि - शांत रहने वाला

शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है। मनुष्य द्वारा किए गए पापों का दंड शनि देव ही देते हैं। शनि देव की आराधना करने से गृह क्लेश समाप्त हो जाता है तथा घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। इनकी उपासना से कार्यों में आने वाली दिक्कतें खत्म हो जाती हैं।

भगवान शनि देव के मंत्र :

शनि देव का तांत्रिक मंत्र
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः।

शनि देव के वैदिक मंत्र
ऊँ शन्नो देवीरभिष्टडआपो भवन्तुपीतये।

शनि देव का एकाक्षरी मंत्र
ऊँ शं शनैश्चाराय नमः।

शनि देव का गायत्री मंत्र
ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।।

भगवान शनि देव के अन्य मंत्र
ऊँ श्रां श्रीं श्रूं शनैश्चाराय नमः।
ऊँ हलृशं शनिदेवाय नमः।
ऊँ एं हलृ श्रीं शनैश्चाराय नमः।
ऊँ मन्दाय नमः।।
ऊँ सूर्य पुत्राय नमः।।

साढ़ेसाती से बचने के मंत्र
शनि देव की साढ़ेसाती के प्रकोप से बचने के लिए शनि देव को इन मंत्रों द्वारा प्रसन्न करना चाहिए:

ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम ।
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात ।।
ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शंयोरभिश्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः ।।
ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌ ।।

क्षमा के लिए शनि मंत्र
निम्न मंत्रों के जाप द्वारा शनि देव से अपने गलतियों के लिए क्षमा याचना करें।

अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेहर्निशं मया ।
दासोयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर ।।
गतं पापं गतं दु: खं गतं दारिद्रय मेव च ।
आगता: सुख-संपत्ति पुण्योहं तव दर्शनात् ।।

अच्छे स्वास्थ्य के लिए शनि मंत्र
शनिग्रह को शांत करने तथा रोग को दूर करने के लिए शनि देव के इस मंत्र का जाप करना चाहिए :

ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिहा ।
कंकटी कलही चाउथ तुरंगी महिषी अजा ।।
शनैर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन् पुमान्।दुःखानि नाश्येन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखमं ।।

शनि देव की पूजा के समय निम्न मंत्रों का प्रयोग करना चाहिए :
भगवान शनिदेव की पूजा करते समय इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें चन्दन लेपना चाहिए -

भो शनिदेवः चन्दनं दिव्यं गन्धादय सुमनोहरम् |
विलेपन छायात्मजः चन्दनं प्रति गृहयन्ताम् ||

भगवान शनिदेव की पूजा में इस मंत्र का जाप करते हुए उन्हें अर्घ्य समर्पण करना चाहिए -
ॐ शनिदेव नमस्तेस्तु गृहाण करूणा कर |
अर्घ्यं च फ़लं सन्युक्तं गन्धमाल्याक्षतै युतम् ||

इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान श्री शनिदेव को प्रज्वलीत दीप समर्पण करना चाहिए -
साज्यं च वर्तिसन्युक्तं वह्निना योजितं मया |
दीपं गृहाण देवेशं त्रेलोक्य तिमिरा पहम्. भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने ||

इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान शनिदेव को यज्ञोपवित समर्पण करना चाहिए और उनके मस्तक पर काला चन्दन (काजल अथवा यज्ञ भस्म) लगाना चाहिए -
परमेश्वरः नर्वाभस्तन्तु भिर्युक्तं त्रिगुनं देवता मयम् |
उप वीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः ||

इस मंत्र को पढ़ते हुए भगवान श्री शनिदेव को पुष्पमाला समर्पण करना चाहिए -
नील कमल सुगन्धीनि माल्यादीनि वै प्रभो |
मयाहृतानि पुष्पाणि गृहयन्तां पूजनाय भो ||

भगवान शनि देव की पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करते हुए उन्हें वस्त्र समर्पण करना चाहिए -
शनिदेवः शीतवातोष्ण संत्राणं लज्जायां रक्षणं परम् |
देवलंकारणम् वस्त्र भत: शान्ति प्रयच्छ में ||

शनि देव की पूजा करते समय इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें सरसों के तेल से स्नान कराना चाहिए -
भो शनिदेवः सरसों तैल वासित स्निगधता |
हेतु तुभ्यं-प्रतिगृहयन्ताम् ||

सूर्यदेव पुत्र भगवान श्री शनि देव की पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करते हुए पाद्य जल अर्पण करना चाहिए -
ॐ सर्वतीर्थ समूदभूतं पाद्यं गन्धदिभिर्युतम् |
अनिष्ट हर्त्ता गृहाणेदं भगवन शनि देवताः ||

भगवान शनिदेव की पूजा में इस मंत्र को पढ़ते हुए उन्हें आसन समर्पण करना चाहिए -
ॐ विचित्र रत्न खचित दिव्यास्तरण संयुक्तम् |
स्वर्ण सिंहासन चारू गृहीष्व शनिदेव पूजितः ||

इस मंत्र के द्वारा भगवान श्री शनिदेव का आवाहन करना चाहिए -
नीलाम्बरः शूलधरः किरीटी गृध्रस्थित स्त्रस्करो धनुष्टमान् |
चतुर्भुजः सूर्य सुतः प्रशान्तः सदास्तु मह्यां वरदोल्पगामी ||



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