इस तरह प्रकट हुई कालिंदी यानी अपनी यमुना

March 24, 2018 KUNJ BIHARI JI (PICTURE) 0 Comments

Radha Krishna
Radha Raman

इस तरह प्रकट हुई कालिंदी यानी अपनी यमुना

भारत की सबसे पवित्र और प्राचीन नदियों में यमुना का स्मरण गंगा के साथ ही किया जाता है ! इन नदियों के किनारे और दोआब की पुण्यभूमि में ही भारतीय संस्कृति का जन्म हुआ और विकास भी ! यमुना केवल नदी नहीं है ! इसकी परंपरा में प्रेरणा, जीवन और दिव्य भाव समाहित है ! कृष्ण की बाल लीलाओं से लेकर अवतारी चरित तक कितने ही आख्यान यमुना और कालिंदी से जुड़े हैं !

यमुना को यमराज की बहन माना गया है ! दोनों का स्वरूप काला बताया जाता है जबकि दोनों ही परम तेजस्वी सूर्य की संतान है ! कहते हैं कि सूर्य की एक पत्नी छाया थी ! छाया दिखने में श्यामल थी !  इसी वजह से उनकी संतान यमराज और यमुना भी श्याम वर्ण पैदा हुए ! यमराज ने यमुना को वरदान दिया था कि यमुना में स्नान करने वाला व्यक्ति को यमलोक नहीं जाना पड़ेगा ! संवत्सर शुरु होने के छह दिन बाद यमुना अपने भाई को छोड़ कर धरा धाम पर आ गई थी !

सूर्य की पत्नी का नाम 'संज्ञा देवी' था ! इनकी दो संतानें, पुत्र यमराज तथा कन्या यमुना थी ! संज्ञा देवी पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को न सह सकने के कारण उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बन कर रहने लगीं ! उसी छाया से ताप्ती नदी तथा शनीचर का जन्म हुआ ! इधर छाया का 'यम' तथा 'यमुना' से विमाता सा व्यवहार होने लगा ! इससे खिन्न होकर यम ने अपनी एक नई नगरी यमपुरी बसाई, यमपुरी में पापियों को दण्ड देने का कार्य सम्पादित करते भाई को देखकर यमुनाजी गो लोक चली आईं ! कृष्णावतार के समय भी कहते हैं यमुना वहीं थी !

यमुना नदी का उद्गम यमुनोत्री से है ! यमुनोत्री जाए बिना उस क्षेत्र की तीर्थयात्रा अधूरी मानी जाती है ! समानांतर बहते हुए यह नदी प्रयाग में गंगा में मिल जाती है ! हिमालय पर इसके उद्गम के पास एक चोटी का नाम बन्दरपुच्छ है ! गढ़वाल क्षेत्र की यह सबसे बड़ी चो़टी है, करीब 6500 मीटर ऊंची। इसे सुमेरु भी कहते हैं ! इसके एक भाग का नाम 'कलिंद' है ! यहीं से यमुना निकलती है ! इसीलिए यमुना का नाम 'कलिंदजा' और कालिंदी भी है ! दोनों का मतलब 'कलिंद की बेटी' होता है ! 

अपने उद्गम से आगे कई मील तक विशाल हिमगारों और हिम मंडित कंदराओं में अप्रकट रूप से बहती हुई पहाड़ी ढलानों पर से अत्यन्त तीव्रतापूर्वक उतरती हुई इसकी धारा दूर तक दौड़ती बहती चली जाती है ! ऊंचे आकाश से देखें तो लगेगा कि कोई दैवी सत्ता तेजी से दौड़ती हुई अपने पीछे श्वेतश्याम धारा के चिह्न छोडती जा रही है ! श्रद्धालुजन इसके किनारे बसे तीर्थों के साथ सीधे यमुनोत्तरी ही पहुंचते रहते हैं ! 

भक्त कवियों और विशेषतया वल्लभ मार्गी कवियों ने यमुना के प्रति भावभरे गीत गाए हैं जो घर-घर गूंजते हैं ! ब्रज में यमुना पूरे आध्यत्मिक वैभव  के साथ प्रकट हुई है ! मथुरा में यमुना के 24 घाट हैं। ब्रज में यमुना का महत्त्व वही है जो शरीर में आत्मा का ! यमुना के बिना ब्रज की संस्कृति का कोई महत्त्व ही नहीं है !

ब्रजभाषा के भक्त कवियों और विशेषतया वल्लभ सम्प्रदायी कवियों ने गिरिराज गोवर्धन की भाँति यमुना के प्रति भी अतिशय श्रद्धा व्यक्त की है ! इस सम्प्रदाय का शायद ही कोई कवि हो, जिसने अपनी यमुना के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित न की हो !

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