हे कान्हा मोहें, बहुत सतावत तोरी अँखियाँ,
| हे कान्हा मोहें, बहुत सतावत तोरी अँखियाँ I |
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| Kunj Bihari JI |
चहुँ दिस में कहुँ ठौर नाही मोहें ,
मोरे पीछे पीछे , आवत तोरी अँखियाँ ,
| हे कान्हा मोहें, बहुत सतावत तोरी अँखियाँ I |
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| Kunj Bihari JI |
मेरो मन मॊदिर में ऐसो बसो है ,
मोहे हर पल लुभावत तोरी अँखियाँ ,
| हे कान्हा मोहें, बहुत सतावत तोरी अँखियाँ, |
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| Kunj Bihari JI |
त्रिभुवन में नाही
कोऊ है ऐसो ,
जैसो तीर चलावत तोरी अँखियाँ ,
| हे कान्हा मोहें,
बहुत सतावत तोरी अँखियाँ I |
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| Kunj Bihari JI |
भवसागर में भटक रहा
हूँ ,
काहे नाही , पार
लगावत तोरी अँखियाँ ,
| हे कान्हा मोहें,
बहुत सतावत तोरी अँखियाँ I |
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| Kunj Bihari JI |
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| Kunj Bihari JI |
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| Kunj Bihari JI |
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| Kunj Bihari JI |
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| Kunj Bihari JI |
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| Kunj Bihari JI |
कैसे बन ठन कर खड़ा
सांवरिया सेठ गिरधारी है
मोर मुकुट पीताम्बर ओढ़े कुंडल की छव न्यारी है
मनमोहन की मोहिनी छवी पर तन मन धन सब वारी है
| तिरछे नैना करके विवेक के मारे जिगर कटारी है |
एक या दो जन्म की
नही
अपनी तो जन्म जन्म
की यारी है
बलिहारी है बलिहारी
है बलिहारी है
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