अक्षय तृतीया (AKSHAYA TRITIYA)
अक्षय फलदायी
“अक्षय तृतीया”
18 अप्रैल 2018 बुधवार को अक्षय तृतीया है !
Akshaya Tritiya |
यह युगादि तिथि यानी सतयुग व त्रेतायुग की प्रारम्भ तिथि है ! श्रीविष्णु का नर-नारायण, हयग्रीव और परशुरामजी के रूप में अवतरण व महाभारत युद्ध का अंत इसी तिथि को हुआ था !
इस दिन बिना कोई शुभ मुहूर्त देखे कोई भी शुभ कार्य प्रारम्भ या संम्पन्न किया जा सकता है ! जैसे - विवाह, गृह - प्रवेश या वस्त्र - आभूषण, घर, वाहन, भूखंड आदि की खरीददारी, कृषिकार्य का प्रारम्भ आदि सुख-समृद्धि प्रदायक है !
प्रात:स्नान, पूजन, हवन का महत्त्व
इस दिन गंगा-स्नान करने से सारे तीर्थ करने का फल मिलता है ! गंगाजी का सुमिरन एवं जल में आवाहन करके ब्राम्हमुहूर्त में पुण्यस्नान तो सभी कर सकते है ! स्नान के पश्चात् प्रार्थना करें :-
माधवे मेषगे भानौं मुरारे मधुसुदन ।
प्रात: स्नानेन में नाथ फलद: पापहा भव ॥
हे मधुसुदन ! वैशाख मास में मेष के सूर्य में हे नाथ ! इस प्रात: स्नान से मुझे फल देने वाले हो जाओ और पापों का नाश करों !
सप्तधान्य उबटन व गोझरण मिश्रित जल से स्नान पुण्यदायी है ! पुष्प, धुप-दीप, चंदन अक्षत (साबुत चावल) आदि से लक्ष्मी-नारायण का पूजन व अक्षत से हवन अक्षय फलदायी है !
जप, उपवास व दान का महत्त्व
इस दिन किया गया उपवास, जप, ध्यान, स्वाध्याय भी अक्षय फलदायी होता है ! एक बार हलका भोजन करके भी उपवास कर सकते है ! 'भविष्य पुराण' में आता है कि इस दिन दिया गया दान अक्षय हो जाता है ! इस दिन पानी के घड़े, पंखे, ओले (खांड के लड्डू), पादत्राण (जूते-चप्पल), छाता, जौ, गेहूँ, चावल, गौ, वस्त्र आदि का दान पुण्यदायी है ! परंतु दान सुपात्र को ही देना चाहिए ! अक्षय तृतीया के दिन तक ये अभियान बहार में आ जाते है, जिससे उन्हें अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है !
पितृ-तर्पण का महत्त्व व विधि
इस दिन पितृ-तर्पण करना अक्षय फलदायी है ! पितरों के तृप्त होने पर घर में सुख-शांति-समृद्धि व दिव्य संताने आती है !
विधि :- इस दिन तिल एवं अक्षत में श्री विष्णु एवं ब्रम्हाजी को तत्त्वरूप से पधारने की प्रार्थना करें ! फिर पूर्वजों का मानसिक आवाहन कर उनके चरणों में तिल, अक्षत व जल अर्पित करने की भावना करते हुए धीरे से सामग्री किसी पात्र में छोड़ दें तथा भगवान दत्तात्रेय, ब्रम्हाजी व विष्णुजी से पूर्वजों की सदगति हेतु प्रार्थना करें !
आशीर्वाद पाने का दिन
इस दिन माता-पिता, गुरुजनों की सेवा कर उनकी विशेष प्रसन्नता, संतुष्टि व आशीर्वाद प्राप्त करें ! इसका फल भी अक्षय होता है !
अक्षय तृतीया का तात्त्विक संदेश
'अक्षय' यानी जिसका कभी नाश न हो ! शरीर एवं संसार की समस्त वस्तुएँ नाशवान है, अविनाशी तो केवल परमात्मा ही है ! यह दिन हमें आत्म विवेचन की प्रेरणा देता है ! अक्षय आत्मतत्त्व पर दृष्टी रखने का दृष्टिकोण देता है ! महापुरुषों व धर्म के प्रति हमारी श्रद्धा और परमात्म प्राप्ति का हमारा संकल्प अटूट व अक्षय हो - यही अक्षय तृतीया का संदेश मान सकते है !
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