माँ अम्बे गौरी (दुर्गा) के 9 अवतारों की कहानियाँ
Jai Mata Di |
माँ दुर्गा के 9 रूप
1.शैलपुत्री
2.ब्रह्मचारिणी
3.चन्द्रघंटा
4.कूष्माण्डा
5.स्कंदमाता
6.कात्यायनी
7.कालरात्रि
8.महागौरी
9.सिद्धिदात्री
देवी माँ या निर्मल चेतना स्वयं को सभी रूपों में प्रत्यक्ष करती है और सभी नाम ग्रहण करती है | हर रूप और हर नाम में एक दैवीय शक्ति को पहचानना ही नवरात्रि मनाना है |
|| या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ||
1.शैलपुत्री (पर्वत की बेटी)
वह पर्वत हिमालय की बेटी है और नौ दुर्गा में पहली रूप है। पिछले जन्म में वह राजा दक्ष की पुत्री थी। इस जन्म में उसका नाम सती-भवानी था और भगवान शिव की पत्नी। एक बार दक्षा ने भगवान शिव को आमंत्रित किए बिना एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था देवी सती वहा पहुँच गयी और तर्क करने लगी। उनके पिता ने उनके पति (भगवान शिव) का अपमान जारी रखा था, सती भगवान् का अपमान सहन नहीं कर पाती और अपने आप को यज्ञ की आग में भस्म कर दी | दूसरे जन्म वह हिमालय की बेटी पार्वती-हेमावती के रूप में जन्म लेती है और भगवान शिव से विवाह करती है।
2.ब्रह्मचारिणी (माँ दुर्गा का शांति पूर्ण रूप)
ब्रह्मचारिणी का अर्थ है अनंत में व्याप्त, अनंत में गतिमान–असीम। ब्रह्मा असीम है जिसमें सबकुछ समाहित है।आप यह नहीं कह सकते कि, ‘मैं इसे जानता हूँ’, क्योंकि यह असीम है; जिस क्षण ‘आप जान जाते हैं’, यह सीमित बन जाता है और अब आप यह नहीं कह सकते कि, “मैं इसे नहीं जानता”, क्योंकि यह वहां है – तो आप कैसे नहीं जानते ? क्या आप कह सकते हैं कि, ”मैं अपने हाथ को नहीं जानता। आपका हाथ तो वहां है न। है न ? इसलिये, आप इसे जानते हैं| ब्रह्म असीम है, इसलिये आप इसे नहीं जानते – आप इसे जानते हैं और फिर भी आप इसे नहीं जानते। दोनों ! इसीलिये, यदि कोई आपसे पूछता है तो आपको चुप रहना पड़ता है। जो लोग इसे जानते हैं वे बस चुप रहते हैं क्योंकि यदि मैं कहता हूँ कि, “मैं नहीं जानता” , मैं पूर्णत: गलत हूँ और यदि मैं कहता हूँ कि, “मैं जानता हूँ”, तो मैं उस जानने को शब्दों द्वारा, बुद्धि द्वारा सीमित कर रहा हूँ। इस प्रकार, ब्रह्मचारिणी वो है, जोकि असीम में विद्यमान है, असीम में गतिमान है। गतिहीन नहीं, बल्कि अनंत में गतिमान। ये बहुत ही रोचक है – एक गतिमान होना, दूसरा विद्यमान होना। ब्रह्मचर्य का अर्थ है तुच्छता में न रहना, आंशिकता से नहीं पूर्णता से रहना। इस प्रकार, ब्रह्मचारिणी चेतना है, जोकि सर्व-व्यापक है।
3.चंद्रघंटा (माँ का गुस्से का रूप)
प्राय:, हम अपने मन से ही उलझते रहते हैं – सभी नकारात्मक विचार हमारे मन में आते हैं, ईर्ष्या आती है, घृणा आती है और आप उनसे छुटकारा पाने के लिये और अपने मन को साफ़ करने के लिये संघर्ष करते हैं। मैं कहता हूँ कि ऐसा नहीं होने वाला। आप अपने मन से छुटकारा नहीं पा सकते। आप कहीं भी भाग जायें, चाहे हिमालय पर ही क्यों न भाग जायें, आपका मन आपके साथ ही भागेगा। यह आपकी छाया के समान है। हाँ, प्राणायाम, सुदर्शन क्रिया बहुत सहायक हो सकते हैं; पर फिर भी मन सामने आ ही जाता है। मन को घंटे की ध्वनि के समान स्वीकार करें – घंटे की ध्वनि एक होती है, यह कई नहीं हो सकती, यह केवल एक ही ध्वनि उत्पन्न कर सकता है - सभी छायाओं के बीच मन में एक ही ध्वनि ! सारी अस्तव्यस्तता दैवीय शक्ति का उद्भव करती है – वो है चन्द्रघंटा अर्थात् चन्द्र और घंटा।
4.कुष्मांडा (माँ का ख़ुशी भरा रूप)
‘कू’ का अर्थ है छोटा, ‘इश’ का अर्थ है ऊर्जा और ‘अंडा’ का अर्थ है ब्रह्मांडीय गोला – सृष्टि या ऊर्जा का छोटे से वृहद ब्रह्मांडीय गोला। यह बड़े से छोटा होता है और छोटे से बड़ा; यह बीज से बढ़ कर फल बनता है और फिर फल से दोबारा बीज हो जाता है। इसी प्रकार, ऊर्जा या चेतना में सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होने की और विशाल से विशालतम होने का विशेष गुण है; जिसकी व्याख्या कूष्मांडा करती हैं।
5.स्कंदमाता (माँ के आशीर्वाद का रूप)
देवी दुर्गा का पांचवा रूप है "स्कंद माता", हिमालय की पुत्री, उन्होंने भगवान शिव के साथ शादी कर ली थी। उनका एक बेटा था जिसका नाम "स्कन्दा" था स्कन्दा देवताओं की सेना का प्रमुख था। स्कंदमाता आग की देवी है। स्कन्दा उनकी गोद में बैठा रहता है। उनकी तीन आँख और चार हाथ है। वह सफ़ेद रंग की है। वह कमल पैर बैठी रहती है और उनके दोनों हाथों में कमल रहता है।
6.कात्यायनी (माँ दुर्गा की बेटी जैसी)
माँ कात्यायनी, दुर्गा माता के छटवां रूप हैं। महर्षि कात्यायना एक महान ज्ञानी थे जो अपने आश्रम में कठोर तपस्या कर रहे थे ताकि महिषासुर का अंत हो सके। एक दिन भगवान ब्रह्मा,विष्णु, और महेश्वर एक साथ उनके समक्ष प्रकट हुए। तीनो त्रिमूर्ति ने मिलकर अपनी शक्ति से माता दुर्गा को प्रकट किया। यह आश्विन महीने के 14वें दिन पूर्ण रात्रि के समय हुआ।
महर्षि कात्यायना वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने माता दुर्गा की पूजा की थी इसलिए माता दुर्गा का नाम माँ कात्यायनी कहा जाता है और आश्विन माह के पूर्ण उज्वाल रात्रि सातवें, आठवें और नौवे दिन नवरात्री का त्यौहार मनाया जाता है। दसवें दिन को महिषासुर का अंत मानया जाता है।
माता कात्यायनी को शुद्धता की देवी माना जाता है। माता कात्यायनी के चार हाथ हैं, उनके उपरी दाहिने हाथ में वह मुद्रा प्रदर्शित करती हैं जो डर से मुक्ति देता है, और उनके नीचले दाहिने हाथ में वह आशीर्वाद मुद्रा, उपरी बाएं हाथ में वह तलवार और नीचले बाएं में कमल का फूल रखती है। उनकी पूजा आराधना करने से धन-धन्य और मुक्ति मिलती है।
7.कालरात्रि (माँ का भयंकर रूप)
माँ कालरात्रि, दुर्गा का सातवां रूप हैं। उनका नाम काल रात्रि इसलिए है क्योंकि वह काल का भी विनाश हैं। वह सब कुछ विनाश कर सकती हैं। कालरात्रि का अर्थ है अन्धकार की रात। उनका रैंड काला होता है उनके बाद बिखरे और उड़ते हुए होते हैं। उनका शरीर अग्नि के सामान तेज़ होता है।
उनका वहां गधा है और उनके ऊपर दायिने हाथ में वह आशीर्वाद देती मुद्रा में होती हैं और निचले दायिने हाथ में माँ निडरता प्रदान करती है। उनके ऊपर बाएं हाथ में गदा और निचले बाएं हाथ में लोहे की कटार रखती हैं। उनका प्रचंड रूप बहुत भयानक है परन्तु वह अपने भक्तों की हमेशा मदद करती है इसलिए उनका एक और नाम है भायांकारी भी है। उनकी पूजा करने से भूत, सांप, आग, बाढ़ और भयानक जानवरों के भय से मुक्ति मिलती है।
8.महागौरी (माँ पार्वती का रूप और पवित्रता का स्वरुप)
माँ दुर्गा का आठवां रूप है महागौरी। देवी पारवती का रंग सावला था और इसी कारन महादेव शिवजी उन्हें कालिके के नाम से पुकारा करते थे। बाद में माता पार्वती ने तपस्या किया जिसके कारन शिवजी प्रसन्न हुए और उन्होंने गंगा के पानीको माता पारवती के ऊपर डाल कर उन्हें गोरा रंग दिया। तब से माता पारवती को महागौरी के नाम से पूजा जाने लगा। उनका वाहन बैल है और उनके उपरी दाहिने हाथ से माँ आशीर्वाद वरदान देती है, और निचले दायिने हाथ में त्रिशूल रखती है। उपरी बाएं हाथ में उनके डमरू होता है और निचले हाथ से वह वरदान और अशोर्वाद देती हैं।
9.सिद्धिदात्री (माँ का ज्ञानी रूप)
माँ का नौवा रूप है "सिद्धिदात्री",आठ सिद्धिः है, जो है अनिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, लिषित्वा और वशित्व। माँ शक्ति यह सभी सिद्धिः देती है। उनके पास कई अदबुध शक्तिया है, यह कहा जाता है "देवीपुराण" में भगवान शिव को यह सब सिद्धिः मिली है महाशक्ति की पूजा करने से। उनकी कृतज्ञता के साथ शिव का आधा शरीर देवी का बन गया था और वह "अर्धनारीश्वर" के नाम से प्रसिद्ध हो गए। माँ सिद्धिदात्री की सवारी शेर है, उनके चार हाथ है और वह प्रसन्न लगती है। दुर्गा का यह रूप सबसे अच्छा धार्मिक संपत्ति प्राप्त करने के लिए सभी देवताओं, ऋषियों मुनीस, सिद्ध, योगियों, संतों और श्रद्धालुओं के द्वारा पूजा जाता है।
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क्यों हे देवियों के नौ रूप
यह भौतिक नहीं, बल्कि लोक से परे आलौकिक रूप है, सूक्ष्म तरह से, सूक्ष्म रूप। इसकी अनुभूति के लिये पहला कदम ध्यान में बैठना है। ध्यान में आप ब्रह्मांड को अनुभव करते हैं। इसीलिये बुद्ध ने कहा है, आप बस देवियों के विषय में बात ही करते हैं, जरा बैठिये और ध्यान करिये। ईश्वर के विषय में न सोचिये। शून्यता में जाईये, अपने भीतर। एक बार आप वहां पहुँच गये, तो अगला कदम वो है, जहां आपको सभी विभिन्न मन्त्र, विभिन्न शक्तियाँ दिखाई देंगी, वो सभी जागृत होंगी।
बौद्ध मत में भी, वे इन सभी देवियों का पूजन करते हैं। इसलिये, यदि आप ध्यान कर रहे हैं, तो सभी यज्ञ, सभी पूजन अधिक प्रभावी हो जायेंगे। नहीं तो उनका इतना प्रभाव नहीं होगा। यह ऐसे ही है, जैसे कि आप नल तो खोलते हैं, परन्तु गिलास कहीं और रखते हैं, नल के नीचे नहीं। पानी तो आता है, पर आपका गिलास खाली ही रह जाता है। या फिर आप अपने गिलास को उलटा पकड़े रहते हैं। 10 मिनट के बाद भी आप इसे हटायेंगे, तो इसमें पानी नहीं होगा। क्योंकि आपने इसे ठीक प्रकार से नहीं पकड़ा है।
सभी पूजन ध्यान के साथ शुरू होते हैं और हजारों वर्षों से इसी विधि का प्रयोग किया जाता है। ऐसा पवित्र आत्मा के सभी विविध तत्वों को जागृत करने के लिये, उनका आह्वाहन करने के लिये किया जाता था। हमारे भीतर एक आत्मा है। उस आत्मा की कई विविधतायें हैं, जिनके कई नाम, कई सूक्ष्म रूप हैं और नवरात्रि इन्हीं सब से जुड़े हैं – इन सब तत्वों का इस धरती पर आवाहन, जागरण और पूजन करना।
माँ दुर्गा की कहानियां (प्रेरक-प्रसंग)
1.क्यों माता शक्ति (माँ भगवती) का नाम दुर्गा पड़ा ?
पुरातन काल में दुर्गम नाम का एक अत्यंत बलशाली दैत्य हुआ करता था। उसने ब्राहमाजी को प्रसन्न कर के समस्त वेदों को अपनें आधीन कर लिया, जिस कारण सारे देव गण का बल क्षीण हो गया। इस घटना के उपरांत दुर्गम नें स्वर्ग पर आक्रमण कर के उसे जीत लिया।और तब समस्त देव गण एकत्रित हुए और उन्होने देवी माँ भगवती का आह्वान किया और फिर देव गण नें उन्हे अपनी व्यथा सुनाई। तब माँ भगवती नें समस्त देव गण को दैत्य दुर्गम के प्रकोप से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया।
माँ भगवती नें दुर्गम का अंत करने का प्रण लिया है, यह बात जब दुर्गम को पता चली तब उसने सवर्ग लोग पर पुनः आक्रमण कर दिया। और तब माँ भगवती नें दैत्य दुर्गम की सेना का संहार किया और अंत में दुर्गम को भी मृत्यु लोक पहुंचा दिया। माँ भगवती नें दुर्गम के साथ जब अंतिम युद्ध किया तब उन्होने भुवनेश्वरी, काली, तारा, छीन्नमस्ता, भैरवी, बगला तथा दूसरी अन्य महा शक्तियों का आह्वान कर के उनकी सहायता से दुर्गम को पराजित किया था।
इस भीषण युद्ध में विकट दैत्य दुर्गम को पराजित करके उसका वध करने पर माँ भगवती दुर्गा नाम से प्रख्यात हुईं।
2.माँ दुर्गा नें जब नष्ट किया देवगण का अभिमान
देवताओं और राक्षसों के बीच एक बार अत्यंत भीषण युद्ध हुआ। रक्त से सराबोर इस लड़ाई में अंततः देवगण विजयी हुए। जीत के मद में देव गण अभिमान और घमंड से भर गए। तथा स्वयं को सर्वोत्तम मानने लगे। देवताओं के इस मिथ्या अभिमान को नष्ट करने हेतु माँ दुर्गा नें तेजपुंज का रूप धारण किया और फिर देवताओं के समक्ष प्रकट हुईं। तेजपुंज विराट स्वरूप देख कर समस्त देवगण भयभीत हो उठे। और तब सभी देवताओं के राजा इन्द्र नें वरुण देव को तेजपुंज का रहस्य जानने के लिए आगे भेजा।
तेजपुंज के सामने जा कर वरुण देव अपनी शक्तियों का बखान करने लगे। और तेजपुंज से उसका परिचय मांगने लगे। तब तेजपुंज नें वरुण देव के सामने एक अदना सा, छोटा सा तिनका रखा और उन्हे कहा की तुम वास्तव में इतने बलशाली हो जितना तुम खुद का बखान कर रहे हो तो इस तिनके को उड़ा कर दिखाओ।
वरुण देव नें एड़ी-चोटी का बल लगा दिया पर उनसे वह तिनका रत्ती भर भी हिल नहीं पाया और उनका घमंड चूर-चूर हो गया। अंत में वह वापस लौटे और उन्होने वह वास्तविकता इन्द्र देव से कही ।
इन्द्र देव नें फिर अग्नि देव को भेजा। तेजपुंज नें अग्नि देव से कहा की अपने बल और पराक्रम से इस तिनके को भस्म कर के बताइये।
अग्नि देव नें भी इस कार्य को पार लगाने में अपनी समस्त शक्ति झोंक दी। पर कुछ भी नहीं कर पाये। अंत में वह भी सिर झुकाये इन्द्र देव के पास लौट आए। इस तरह एक एक-कर के समस्त देवता तेजपुंज की चुनौती से परास्त हुए तब अंत में देव राज इन्द्र खुद मैदान में आए पर उन्हे भी सफलता प्राप्त ना हुई।
अंत में समस्त देव गण नें तेजपुंज से हार मान कर वहाँ उनकी आराधना करना शुरू कर दिया। तब तेजपुंज रूप में आई माँ दुर्गा में अपना वास्तविक रूप दिखाया और देवताओं को यह ज्ञान दिया की माँ शक्ति के आशीष से आप सब नें दानवों को परास्त किया है। तब देवताओं नें भी अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी और अपना मिथ्या अभिमान त्याग दिया।
3.माँ दुर्गा का वाहन शेर क्यों है ?
एक धार्मिक (पौराणिक) कथा अनुसार माँ पार्वती नें भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। हजारों वर्षों तक चली इस कठोर तपस्या के फल स्वरूप माँ पार्वती नें शिवजी को तो पा लिया पर तप के प्रभाव से वह खुद सांवली पड़ गयी।
विनोद में एक दिन शिवजी नें माँ पार्वती को काली कह दिया, यह बात माँ पार्वती को इतनी बुरी लग गयी की उन्होने कैलाश त्याग दिया और वन गमन किया। वन में जा कर उन्होने घोर तपस्या की। उनकी इस कठिन तपस्या के दौरान वहाँ एक भूखा शेर, उनका भक्षण करने के इरादे से आ चढ़ा। लेकिन तपस्या में लीं माँ पार्वती को देख कर वह शेर चमत्कारिक रूप से वहीं रुक गया और माँ पार्वती के सामने बैठ गया। और उन्हे निहारता रहा।
माँ पार्वती नें तो हठ ले ली थी की जब तक वह गौरी (रूपवान) नहीं हो जाएंगी तब तक तप करती ही रहेंगी। शेर भी भूखा प्यासा उनके सामने बरसों तक बैठा रहा। अंत में शिवजी प्रकट हुए और माँ पार्वती को गौरी होने का वरदान दे कर अंतरध्यान हो गए। इस प्रसंग के बाद पार्वती माँ गंगा स्नान करने गईं तब उनके अंदर से एक और देवी प्रकट हुई। और माँ पार्वती गौरी बन गईं। और उनका नाम इसीलिए गौरी पड़ा। और दूसरी देवी जिनका स्वरूप श्याम था उन्हे कौशकी नाम से जाना गया।
स्नान सम्पन्न करने के उपरांत जब माँ पार्वती (गौरी) वापस लौट रही थीं तब उन्होने देखा की वहाँ एक शेर बैठा है जो उनकी और बड़े ध्यान से देखे जा रहा है। शेर एक मांस-आहारी पशु होने के बावजूद, उसने माँ पर हमला नहीं किया था यह बात माँ पार्वती को आश्चर्यजनक लगी। फिर उन्हे अपनी दिव्य शक्ति से यह भास हुआ की वह शेर तो तपस्या के दौरान भी उनके साथ वहीं पर बैठा था। और तब माँ पार्वती नें उस शेर को आशीष दे कर अपना वाहन बना लिया।
4.माँ दुर्गा नें किया प्रचंड पराक्रमी असुर महिषासुर का संहार
अत्याचारी असुरों का नाश करने हेतु माँ भगवती नें कई अवतार लिए हैं। असुर महिषासुर का वध करने के लिए शक्ति माँ नें दुर्गा का अवतार लिया था। एक धार्मिक कथा अनुसार महिषासुर नें अपने बल और पराक्रम से स्वर्ग लोक देवताओं से छीन लिया था। तब सारे देवता मिल कर विष्णु भगवान एवं शंकर भगवान से सहाय मांगने उनके समक्ष गए। पूरी बात जान कर भगवान विष्णु एवं शंकर भगवान क्रोधित हो उठे।
और तब उन सभी के मुख से दिव्य तेज प्रकट हुआ जिस तेज से एक नारी का सर्जन हुआ। जिन्हें “दुर्गा” कहा गया।
Jai Mata Di |
भगवान शिव के तेज से मुख बना।
यमराज के तेज से केश बने।
भगवान विष्णु के तेज से भुजाएँ बनी।
चंद्रमाँ के तेज से वक्ष स्थल की रचना हुई।
सूर्यदेव के तेज से पैरों की उँगलियों की रचना हुई।
कुबेरदेव के तेज से नाक की रचना हुई।
प्रजापतिदेव के तेज से दांत बने।
अग्निदेव के तेज से तीनों नेत्र की रचना हुई।
संध्या के तेज से भृकुटी बनी।
वायुदेव तेज से कानों की उत्पति हुई।
दुर्गा माँ के दिव्य रूप के सर्जन करने के बाद देव गण नें उन्हे इन शस्त्रों से शुशोभित किया।
भगवान विष्णु नें सुदर्शन चक्र दिया
भगवान शंकर नें त्रिशूल दिया।
अग्निदेव नें अपनी प्रचंड श्कती प्रदान की।
वरुणदेव नें शंख भेट किया।
इन्द्रदेव नें वज्र और घंटा अर्पण किया।
पवनदेव नें धनुषबाण दिये।
यमराज नें काल दंड अर्पण किया।
प्रजापति दक्ष नें स्फटिक माला अर्पण की।
भगवान ब्रह्मा नें कमंडल दिया।
सूर्यदेव नें असीम तेज प्रदान किया।
सरोवर नें कभी ना मुरझानें वाली कमल की माला प्रदान की।
पर्वतराज हिमालय नें सवारी करने के लिए शक्तिशाली सिंह भेट किया।
कुबेरदेव नें मधु से भरा एक दिव्य पात्र दिया।
समुद्रदेव नें माँ दुर्गा को एक उज्ज्वल हार, दो दिव्य वस्त्र, एक दिव्य चूड़ामणि, दो कुंडल, दो कड़े, अर्ध चंद्र, एक सुंदर हँसली एवं उँगलियों में पहन नें के लिए रत्न जड़ित अंगूठियां दी।
श्स्त्रो से सुसज्जित माँ दुर्गा नें असुर महिषासुर से भीषण युद्ध किया और उसे परास्त कर के उसका वध कर दिया। उसके पश्चात दुर्गा माँ नें स्वर्गलोक पुनः देवताओं को सौप दिया। बलशाली असुर महिषासुर का हनन करने के बाद दुर्गा माँ महिषासुरमर्दिनी नाम से प्रसिद्धि हुईं।
5.रामायण से जुड़ी दुर्गा माँ की कथा
भगवान राम जब अपनी भार्या सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपना वनवास काट रहे थे,तब लंका नगरी के राक्षस राजा रावण नें देवी सीता का छल से हरण किया था और वह उन्हे बंदी बना कर जबरन समुद्र पार लंका नगरी ले गया था। माँ सीता को मुक्त कराने श्री राम लक्षमण, हनुमान, जांबवान, विभीषण और अपने मित्र सुग्रीव, तथा उसकी सेना सहित समुद्र तट पर पहुंचे थे, ताकि समुद्र पार कर के रावण से युद्ध कर के देवी सीता को मुक्त कराया जा सके।
उस महान कल्याणकारी युद्ध पर जाने से पहले श्री राम नें समुद्र पर नौ दिन तक माँ दुर्गा की पूजा की थी। और उन से विजय प्राप्ति के लिए आशीष ले कर दसवें दिन युद्ध के लिए प्रस्थान किया था। दुर्गा माता के आशीर्वाद से श्री राम नें रावण को परास्त कर के यमलोक भेज दिया और देवी सीता को लंका से बंधनमुक्त कराया।
Jai Mata Di |
जो शेर मां दुर्गा को अपना आहार बनाने आया था,
वह मां की सवारी कैसे बना ?
हिन्दू धर्म
हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं से जुड़े सभी तथ्य बेहद रोचक हैं...
यदि आप हिन्दू धर्म के बारे में अधिक जानकारी नहीं रखते तो शायद समझ ना पाएं। लेकिन यदि आपकी थोड़ी भी रुचि है तो एक बार देवी-देवताओं के बारे में जरूर जानें। उनसे जुड़ी कहानियां, उनका स्वरूप, वे कैसे दिखते थे, कैसे शस्त्र पकड़ते थे और किस वाहन की सवारी करते थे यह भी अति दिलचस्प है।
देवी-देवता और उनके वाहन
भगवान शिव के वाहन नंदी, गणेश जी के वाहन मूषक, मां दुर्गा के वाहन शेर एवं भगवान सूर्य के वाहन सात घोड़े हैं। क्या आप जानते हैं कि सूर्य देव एक या दो नहीं, बल्कि पूरे सात घोड़ों की सवारो क्यों करते हैं।
क्या था उद्देश्य ?
दरअसल इसके पीछे धार्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक उद्देश्य भी छिपा है। कहते हैं इन सातो घोड़ों का एक खास उद्देश्य था, सभी के पास एक खास ऊर्जा थी। वैज्ञानिक दृष्टि से इन सात घोड़ों को सूर्य की सात किरणों का नाम दिया जाता है।
मां दुर्गा का वाहन शेर
इसी तरह से भगवान शिव एवं गणेश जी या अन्य किसी भी हिन्दू देवी-देवता को मिले वाहन के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी बताने जा रहे हैं जो देवी दुर्गा एवं उनके वाहन शेर से जुड़ी है।
कैसे बना शेर माँ दुर्गा का वाहन ?
शक्ति का रूप दुर्गा, जिन्हें सारा जगत मानता है... ना केवल कोई साधारण मनुष्य, वरन् सभी देव भी उनकी अनुकम्पा से प्रभावित रहते हैं। एक पौराणिक आख्यान के अनुसार मां दुर्गा को यूं ही शेर की सवारी प्राप्त नहीं हुई थी, इसके पीछे एक रोचक कहानी बनी है।
एक कहानी - दुर्गा माँ की जय
आदि शक्ति, पार्वती, शक्ति... आदि नाम से प्रसिद्ध हैं मां दुर्गा। धार्मिक इतिहास के अनुसार भगवान शिीव को पतिक रूप में पाने के लि्ए देवी पार्वती ने हजारों वर्ष तक तपस्या की। कहते हैं उनकी तपस्या में इतना तेज़ था जिसके प्रभाव से देवी सांवली हो गईं।
जब शिव जी के मजाक से नाराज हुईं देवी
इस कठोर तपस्या के बाद शिव तथा पार्वती का विवाह भी हुआ एवं संतान के रूप में उन्हें कार्तिकेय एवं गणेश की प्राप्ति भी हुई। एक कथा के अनुसार भगवान शि व से वि्वाह के बाद एक दि न जब शि व, पार्वती साथ बैठे थे तब भगवान शिहव ने पार्वती से मजाक करते हुए काली कह दििया।
तपस्या में मग्न थीं देवी
देवी पार्वती को शिंव की यह बात चुभ गई और कैलाश छोड़कर वापस तपस्या करने में लीन हो गईं। इस बीच एक भूखा शेर देवी को खाने की इच्छा से वहां पहुंचा। लेकिोन चमत्कार तो देखिए... देवी को तपस्या में लीन देखकर वह वहीं चुपचाप बैठ गया।
तब आया एक शेर
ना जाने क्यों शेर देवी के तपस्या को भंग नहीं करना चाहता था। वह सोचने लगा कि देवी कब तपस्या से उठें और वह उन्हें अपना आहार बना ले। इस बीच कई साल बीत गए लेकिेन शेर अपनी जगह डटा रहा।
कई वर्षों तक बैठा रहा
कई वर्ष बीत गए लेकिन माता पार्वती अभी भी तपस्या में मग्न ही थीं, वे तप से उठने का फैसला किसी भी हाल में लेना नहीं चाहती थीं। लेकिन तभी शिव वहां प्रकट हुए और देवी को गोरे होने का वरदान देकर चले गए।
शिव जी ने दिया वरदान
थोड़ी देर बाद माता पार्वती भी तप से उठीं और उन्होंने गंगा स्नान किया। स्नान के तुरंत बाद ही अचानक उनके भीतर से एक और देवी प्रकट हुईं। उनका रंग बेहद काला था।
उन्हें गोरी बना दिया
उस काली देवी के माता पार्वती के भीतर से निकलते ही देवी का खुद का रंग गोरा हो गया। इसी कथा के अनुसार माता के भीतर से निकली देवी का नाम कौशिकी पड़ा और गोरी हो चुकी माता सम्पूर्ण जगत में ‘माता गौरी’ कहलाईं।
दुर्गा माता ने देखा शेर
स्नान के बाद देवी ने अपने निकट एक सिंह को पाया, जो वर्षों से उन्हें खाने की ललक में बैठा था। लेकिन देवी की तरह ही वह वर्षों से एक तपस्या में था, जिसका वरदान माता ने उसे अपना वाहन बनाकर दिया।
बनाया अपनी सवारी
देवी उस सिंह की तपस्या से अति प्रसन्न हुई थीं, इसलिए उन्होंने अपनी शक्ति से उस सिंह पर नियंत्रण पाकर उसे अपना वाहन बना लिया।
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