श्री नाभादास जी महाराज
श्री नाभादास जी महाराज |
श्री नाभादास जी महाराज
महाराष्ट्र में एक ऋग्वेदि ब्राह्मण परिवार था, वे हनुमान जी के वे अनन्य भक्त थे ! उनके कोई संतान नहीं थी ! किसी लौकिक प्रसंग में किसी ने पुत्रहीन कहकर उन्हें पीड़ित कर दिया और इस बात से दुखी होकर उन्होंने एक संत से पुत्र प्राप्ति की इच्छा की प्रार्थना करने लगे ! संत ने उन्हें श्री हनुमान जी की उपासना करने के लिए कहा ! श्री हनुमान जी की नित्य उपासना वे करने लगे और उनके चरणों में पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना करने लगे !
एक दिन प्रसन्न होकर श्री हनुमान जी ने दर्शन दे कर कहा की तुम्हारे भाग्य में पुत्र सुख नहीं है पर आप हमारे बहुत प्रेमी भक्त हो अतः हनुमान जी ने आशीर्वाद दिया की मेरी कृपा से तुम्हारा वंश चलेगा ! श्री हनुमान जी ने यह भी कहा था की आपके वंश में एक अद्भुत महात्मा प्रकट होंगे जिनके द्वारा जगत का कल्याण होगा ! उस समय से इस वंश को हनुमान वंश कहा जाने लगा !
श्री नाभादास जी जन्म से ही नेत्रहीन थे, नेत्र के चिन्ह तक नहीं थे ! इस बात से इनके पिताजी बड़े दुखी हुए !पिताजी ने ज्योतिष शास्त्र के विद्वानों से इनके भविष्य के बारे में पूछा तो ज्योतिषियों ने बताया की यह बहुत अद्भुत बालक है, यह जगत में लाखो लोगो का भक्ति मार्ग प्रशस्त करेगा ! जब ये 2 वर्ष के थे तब इनके पिताजी का देहांत हो गया ! उस के बाद माता ने इनका पालन पोषण किया ! जब श्री नाभाजी 5 वर्ष के हुए उस समय महाराष्ट्र में भयंकर अकाल पड गया था, कोई फल खाकर, कोई घास खाकर गुजर करने लगा !
अकाल से पीड़ित हो कर बालक को लेकर उनकी माता जल और अन्न की खोज में भटकने लगी ! कही दूर दूर तक कुछ नही मिल रहा था ! भटकते हुए वे राजस्थान की ओर आये और वहाँ एक वन में वृक्ष के निचे बालक को बिठा दिया ! थकान के कारण बालक को साथ ले कर घूमना कठिन हो गया था अतः माता ने कहा की बेटा तुम यही बैठो,मै अन्न जल की खोज करने जाती हूँ ! अन्न जल की खोज में माता बहुत दूर तक निकल गयी और कमजोरी के कारण पृथ्वी पर गिरने लगी !
उस समय उनको यह विश्वास हो गया की अब प्राण रहेंगे नहीं ! इन्होंने भगवान् से विनती की – मेरे बालक को मै निर्जन वन में छोड़ कर आयी हूँ, नेत्रहीन, पितृहीन बालक के अब आप ही रक्षक है ! अपने अपने घर की तो सबको ममता होती है पर आपको तो सबके घरो की ममता है ! मै तो केवल जन्म देने वाली माता हूं, परंतु वास्तव में सबके माता -पिता आप ही है ! इनकी माता का शरीर छूट गया और नाभाजी वन में रह गए ! बहुत देर तक माता नहीं आयी जानकार नाभा जी माता को पुकारने लगे और कभी किसी वृक्ष से टकराते, कभी किसी वृक्ष से ! श्री नाभा जी ने निश्चय किया की अब किसी नर से सहायता मांग कर कुछ नहीं होगा अब तो केवल नारायण ही सहायता कर सकते है !
नाभाजी भगवान् नारायण को पुकारने लगे और इसी पुकार से भगवान् ने उनपर महान् कृपा की थी ! श्री नभा जी की करुण पुकार को भगवान् ने सुन लिया ! दैवयोग से श्री किल्हदेव जी और श्री अग्रदेव जी - यह दो महापुरुष हरिद्वार कुम्भ स्नान करके अपने आश्रम गलता जी (जयपुर) जा रहे थे ! यह गलता आश्रम श्री गालव ऋषि का आश्रम माना जाता है ! चलते चलते संतो को दो मार्ग पड़े, एक वन (जंगल) वाला रास्ता और दूसरा राजमार्ग वाला रास्ता ! उन्होंने सोचा की जंगल से जाना ठीक नहीं होगा अतः राजमार्ग से जाना ही उचित है ! जैसे ही वे राजमार्ग की ओर चलने लगे उसी समय आवाज आयी – हे संतो ! ठहरए ! आस पास कोई नहीं दिखाई पड़ा, इस बात से निश्चित ही गया की यह आकाशवाणी है !
दोनों संत हाथ जोड़े खड़े हो गए ! आगे आकाशवाणी हुई की आप इस रास्ते को छोड़कर वनमार्ग से जाएं , वहाँ आपको एक अनोखा रत्न प्राप्त होगा जिसके द्वारा जगत का बहुत बड़ा कल्याण होगा ! आकाशवाणी मौन होने पर दोनों संत सोचने लगे की हम फक्कड़ महात्माओ को रत्न से क्या लेना देना ? ये कैसी आकाशवाणी हो गयी ? तब श्री किल्हदेवजी कहने लगे की हो सकता है की वह रत्न पत्थर का न हो ! वह रत्न किसी और रूप में भी हो सकता है ! दोनों संत जंगल वाले मार्ग की ओर चल दिए !
रास्ते में उन्हें यह नेत्रहीन बालक दिखाई पड़ा ! वह वन में भटक रहा है, पेड़ो से बारबार टकराता है ! कह रहा है–हे दीनबंधु प्रभु नारायण चरणों में मुझे चकाना दो, जिसमे यह जीवन सार्थक हो ऐसा कोई सहज बहना हो ! संतो ने सोचा की कही इसी बालक के लिए ही तो आकाशवाणी नहीं हुई ! संत उसके पास गए और श्री किल्हदेवजी जी ने नाभाजी से कहा – वत्स ! जैसे ही यह शब्द नाभाजी ने सुना, वे जान गए की यह कोई महात्मा है ! आवाज की दिशा का अनुसंधान करके नाभाजी ने संत को प्रणाम् किया ! नाभा जी से सन्तों ने कुछ प्रश्न किये – तुम्हारा पिता कौन है ? बालक ने कहा - जो सबके पिता है वही हमारे पिता है ?
आगे पूछा गया - क्या तुम अनाथ हो ? बालक ने कहा – नहीं, जिसके नाथ जगन्नाथ वह अनाथ कैसे हो सकता है ? फिर संतो ने पूछा - कहा से आये हो ? बालक ने कहा - अपने स्वरुप को भुला हुआ जीव यह नहीं जान पता की वह कहाँ से आया है, पर जहाँ से सब आये है मैं भी उसी भगवान् के नित्य धाम से आया हु ! संतोने पूछा – तुम्हारा नाम क्या है ? बालक ने कहा - पञ्च महाभूत और सात धातुओ से बना शरीर है, कैसे कहु मैं कौन हु ! तुम्हे कहा जाना है – जाना तो मुझे भगवन के चरण कमलों में है परंतु संसार के जाल में फस गया हु, आप जैसे महापुरुष जब तक मार्ग नहीं बताते तब तक संसार को पार करना कैसे संभव है !
फिर संतो ने पूछा – इस निर्जन वन में तुम्हारा रक्षक कौन है ? – जो माता के गर्भ में रक्षा करता है वही मेरी रक्षा कर रहा है ! दोनों संत समझ गए के यह साधारण बालक नहीं है, अवश्य इसी बालक रत्न के लिए आकाशवाणी हुई थी, बड़े बड़े साधक भी ऐसे उत्तर नहीं दे पाते ! शरीर के माता पिता के बारे में संतो ने पूछा तब नाभा जी ने सारी घटना सुनायी ! संत जान गए की माता पिता शरीर छोड़ चुके है ! सन्तों ने बालक से पूछा – क्या तुम हमारे साथ चलोगे ? हम गलता गादी, जयपुर में विराजते है ! बालक ने हाँ कहा !
श्री अग्रदास जी ने अपने बड़े गुरुभाई श्री किल्हदेवजी जी से कहा – यह तो निश्चित है की इस बालक की भीतर वाली आँखे तो खुली हुई है परंतु यदि इसकी बहार वाली आखें खुल जाए तो यह और अधिक सेवा के योग्य हो जायेगा ! सर्व समर्थ सिद्ध महात्मा श्री किल्हदेवजी ने अपने कमण्डलु से जल लेकर नाभजी के नेत्रो पर छिड़क दिया ! संतो की कृपा से नाभाजी के दोनों नेत्र खुल गये और सामने दोनों संतो की जोड़ी को नाभा जी ने निहारा ! संतो के दर्शन पाकर श्री नाभा जी को परम आनंद हुआ ! दोनों सिद्ध महापुरुषो के दर्शन पाकर नाभा जी उनके चरणों मे पड गये ! उनके नेत्रो में आँसू आ गये ! दोनों संत कृपा करके बालक नाभजी को अपने साथ गलता जी (जयपुर) लाये !
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